This is default featured slide 1 title

There is nothing wrong with good accounting, except that it does not necessarily lead to good science.

This is default featured slide 2 title

Aggressive accounting does not mean illegal accounting.

This is default featured slide 3 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 4 title

Accounting does not make corporate earnings or balance sheets more volatile. Accounting just increases the transparency of volatility in earnings.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Friday, May 18, 2018

पूंजी क्या है ? - What is capital?


उस धनराशि को पूंजी कहा जाता है जिसे व्यवसाय का स्वामी व्यवसाय में लगता है।  इसी राशि से व्यवसाय प्रारम्भ किया जाता है।

पूंजी को दो निम्न भागों में विभाजित किया जाता है :-


  1. स्थिर पूंजी(Fixed Capital) :- सम्पत्तिओं को प्राप्त करने के लिए जो धनराशि लगायी जाती है, वह स्थिर पूंजी कहलाती है, जैसे - मशीनरी तथा संयंत्र का क्रय, भूमि तथा भवन का क्रय। 
  2. कार्यशील पूंजी (Working Capital) :- पूंजी का वह भाग जो व्यवसाय के दैनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल होता है, कार्यशील पूंजी कहलाता है। 
          कार्यशील पूंजी = चालु सम्पत्तियाँ - चालु दायित्व 


Read it for further knowledge :-


Share:

Wednesday, May 16, 2018

सम्पत्तियाँ क्या होती हैं ? - What are the Assets?

सम्पत्तियों से आशय उद्यम के आर्थिक स्त्रोत से है जिन्हें मुद्रा में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका मूल्य होता है और जिनका उपयोग व्यापर के संचालन व आय अर्जन के लिए किया जाता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सम्पत्तियाँ वे स्त्रोत हैं जो भविष्य में लाभ पहुंचाते हैं।

उदाहरण के लिए, मशीन, भूमि, भवन, ट्रक आदि। 
इस तरह सम्पत्तियाँ व्यवसाय के मूल्यवान साधन हैं जिन पर व्यवसाय का स्वामित्व है तथा जिन्हे मुद्रा में मापी जाने वाली लागत पर प्राप्त किया गया है।

सम्पत्तियों के प्रकार निम्नलिखित हैं :-

  • स्थायी सम्पत्तियाँ (Fixed Assets):- स्थायी सम्पत्तियों से आशय उन सम्पत्तियों से है जो व्यवसाय में दीर्घकाल राखी जा सकती हैं और जो पुनः विक्रय के लिए नहीं हैं। 
          उदाहरण - भूमि, भवन, मशीन, उपस्कर आदि। 
  • चालु सम्पत्तियाँ (Current Assets):- चालु सम्पत्तियों से आशय उन सम्पत्तियों से है जो व्यवसाय में पुनः विक्रय के लिए या अल्पावधि में रोकड़ में परिवर्तित करने के लिए राखी जाती है। इसलिए इन्हें चालु सम्पत्तियाँ, चक्रीय सम्पत्तियाँ और परिवर्तनशील सम्पत्तियाँ भी कहा जाता है। 
           उदाहरण :- देनदार, पूर्वदत्त व्यय, स्टॉक, प्राप्य बिल आदि। 
  • अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets):- अमूर्त सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिनका भौतिक अस्तित्व नहीं होता है, किन्तु मौद्रिक मूल्य होता है। 
           उदाहरण :- ख्याति, ट्रेड मार्क, पेटेंट्स इत्यादि। 
  • मूर्त सम्पत्तियाँ (Tangible Assets):- मूर्त  सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जिन्हें देखा तथा छुआ जा सकता हो अर्थात जिनका भौतिक अस्तित्व हो। 
          उदाहरण :- भूमि, भवन, मशीन, संयंत्र, उपस्कर, स्टॉक आदि। 
  • क्षयशील सम्पत्तियाँ (Wasting Assets):- क्षयशील सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जो प्रयोग या उपभोग के कारण घटती जाती हैं या नष्ट हो जाती है। 
           उदाहरण :- खानें, तेल के कुँए आदि।  


Read it for further knowledge :-

Share:

Tuesday, May 15, 2018

Golden Rules Of Accounting क्या है ? - What is Golden Rules Of Accounting?



1. व्यक्तिगत लेखा (Personal Accounting) :- व्यक्ति एवं संस्था से सम्बंधित लेखा को       व्यक्तिगत लेखा कहते हैं।  जैसे राम का लेख, मोहन वस्त्रालय का लेखा व्यक्तिगत लिखा     हुआ। 

     व्यक्तिगत लेखा के नियम (Rule Of Personal Account)
      पाने वाले का नाम (Debit The Receiver)
    देने वाले का जमा  (Credit The Giver)
    स्पष्टीकरण :- जो व्यक्ति कुछ प्राप्त करते हैं उन्हें Receiver  कहा जाता है।  जो            व्यक्तिकुछ देते हैं, उन्हें Giver कहा जाता है और उन्हें Credit में रखा जाता है। 

        उदाहरण :-
        मोहन को 1000 रुपये दिए गए, मोहन 1000 रुपये ले रहा है वह Receiver हुआ इसलिए उसे Debit में रखा जाएगा। 
        सोहन 1000 रुपया प्राप्त हुआ।  सोहन 1000 रुपये दे रहा है वह Giver हुआ।  इसलिए उसे Credit में रखा जाएगा। 

2. वास्तविक लेखा (Real Account):- 
     वास्तु एवं संपत्ति से सम्बंधित लेखा को वास्तविक लेखा कहते हैं।  जैसे रोकड़ का लेखा, साइकिल का लेखा वास्तविक लेखा हुआ। 
      वास्तविक लेखा के नियम (Rule Of Real Account)
       जो आया है (Debit What Comes In)
       जो गया है  (Credit What Goes Out)
       स्पष्टीकरण :- व्यवसाय में जो वस्तुएं आती हैं उसे Debit में रखा जाता है और वैसे से जो वस्तुएं जाती हैं उसे Credit में रखा जाता है। 
        
        उदाहरण :-        
        सचिन से 1000 रुपये प्राप्त हुए।  1000 रुपये आ रहे हैं इसलिए उसे Debit में रखा जाएगा। 
        रोहित के हाथ से घडी बेचीं हाई।  घडी जा रही है इसलिए उसे Credit में रखा जाएगा। 
3.    अवास्तविक लेखा (Nominal Account) :-
        खर्च एवं आमंदनी से सम्बंधित लेखा को अवास्तविक लेखा कहा जाता है।  जैसे किराया का लेखा, ब्याज का लेखा अवास्तविक लेखा हुआ। 
        
      अवास्तविक लेखा के नियम (Rule Of Nominal Account)
       सभी खर्च एवं हानियों को नाम (Debit All Expenses And Losses)
     सभी आमंदनी एवं लाभों को जमा (Credit All Incomes And Gains)
        व्यवसाय मे जो खर्च होता है उसके नाम को Debit किया जाता है।  इसी प्रकार जो आमंदनी होती है उसके नाम को Credit किया जाता है। 


Read it for further knowledge :-

Share:

Monday, May 14, 2018

उद्देश्य के आधार पर लेखांकन के प्रकार क्या हैं ?- What are the types of accounting based on the objective?

विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार की लेखांकन पद्धतियां विकसित हुई हैं।  इन्हें लेखांकन के प्रकार कहा जाता है।

उद्देश्यों के आधार पर लेखांकन के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं :-

  • वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting) :- वित्तीय लेखांकन वह लेखांकन है जिसके अंतर्गत वित्तीय प्रकृति वाले सौदों को लेखबद्ध किया जाता है।  इन्हें सामान्य लेखाकर्म भी कहते हैं ोे इन लेखों के आधार पर लाभ-हानि या आय विवरण तथा चिट्ठा तैयार किया जाता है। 
  • लागत लेखांकन (Cost Accounting) :- लागत लेखांकन वित्तीय पद्धति की सहायक है।  लागत लेखांकन किसी  वास्तु या सेवा की लागत का व्यवस्थित या वैज्ञानिक विधि से लेखा करने की प्रणाली है।  इसके द्वारा वास्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का सही अनुमान लगाया जा सकता है।  इसके द्वारा लागत पर नियंत्रण भी किया जा सकता है।  यह उत्पादन, विक्रय एवं वितरण की लागत भी बताता है। 
  • प्रबंध लेखांकन (Management Accounting) :- यह लेखांकन की आधुनिक कड़ी है।  जब कोई लेखा विधि प्रबंध की आवश्यकताओं के लिए आवश्यक सूचनाएं प्रदान करती है, तब इसे प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है। 

Read it for further knowledge :-

Share:

Tuesday, May 8, 2018

लेखांकन के उद्देश्य क्या हैं ? - What are the purpose of accounting?

लेखांकन के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं -


  1.  लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी व्यावसायिक लेन-देनों का पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से लेखा करना है।  सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से भूल की संभावना नहीं रहती और परिणाम सुद्ध प्राप्त होता है। 
  2. लेखांकन का दूसरा उद्देश्य एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि ज्ञात होता है।  
  3. लेखांकन का एक उद्देश्य संस्था की वित्तीय स्तिथि के संबंध में जानकारी प्राप्त करना है। 
  4. लेखांकन का एक कार्य वित्तीय वाली सूचनाएं प्रदान करना है जिससे प्रबंधकों को निर्णय लेने में सुविधा हो, साथ ही सही निर्णय लिए जा सकें। इसके लिए वैकल्पिक उपाय भी लेखांकन उपलब्ध कराता है। 
  5. व्यवसाय में कई पक्षों के हिट होते हैं, जैसे कर्मचारी वर्ग, प्रबंधक, लेनदार, विनियोजक आदि।  व्यवसाय में हिट रखने वाले विभिन्न पक्षों को उनसे संबंधित सूचनाएं उपलब्ध कराना भी लेखांकन का एक उद्देश्य है। 

Read it for further knowledge :-

Share:

लेखांकन के क्या कार्य हैं ? - What are the functions of accounting?

लेखांकन के छः निम्नलिखित कार्य हैं :


  1. लेखात्मक कार्य (Recordative Function) :- लेखांकन का यह आधारभूत कार्य है।  इस कार्य के अंतर्गत व्यवसाय की प्रारम्भिक पुस्तकों में क्रमबद्ध लेखे करना, उनको उपयुक्त खातों में वर्गीकृत करना  अर्थात उसने खाते तैयार करना और तलपट बनाने के कार्य शामिल हैं।  
  2. व्याख्यात्मक कार्य (Interpretative Function):- इस कार्य के अंतर्गत लेखांकन सूचनाओं में हिट रखने वाले लेखांकन पक्षों के लिए वित्तीय विवरण व प्रतिवेदन का विश्लेषण एवं व्याख्या शामिल है।  तृतीय पक्ष एवं प्रबंधकों की दृष्टि से लेखांकन का यह कार्य महत्वपूर्ण माना गया है। 
  3. संप्रेषणात्मक कार्य (Communicating Function):- लेखांकन को व्यवसाय की भाषा खा जाता है।  जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के साधन के रूप में कार्य करना है क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करती है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय की वित्तीय स्तिथि व अन्य सूचनाएं उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक हैं। 
  4. वैधानिक आवश्यकतों की पूर्ति करना (Meeting Legal Needs):- विभिन्न कानूनों जैसे - कंपनी अधिनियम, बिक्री कर अधिनियम, आदि द्वारा विब्भिन्न प्रकार के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है।  जैसे - वार्षिक खाते, आयकर रिटर्न, बिक्री कर रिटर्न आदि ये सभी जमा किये जा सकते हैं यदि लेखांकन ठीक से रखा जाए। 
  5. व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना (Protecting Business Assets):- लेखांकन का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना है।  यह तभी संभव है, जबकि विब्भिन्न सम्पत्तियों का उचित लेखा रखा जाए।  
  6. निर्णय लेने में सहायता करना (Facilitating Decision Making):- लेखांकन महत्वपूर्ण आंकड़ें उपलब्ध कराता है जिससे निर्णयन कार्य में सुविधा होती है। 

Read it for further knowledge :-

Share:

Monday, May 7, 2018

लेखांकन के क्या लाभ हैं ? - What are the profits of accounting?

लेखांकन के निम्नलिखित लाभ हैं :-

  • कोई भी व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, सभी बातों को स्मरण नहीं रख सकता है।  व्यापार में प्रतिदिन सैकड़ों लेन-देन होते हैं, वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है।  ये नकद और उधार दोनों हो सकते हैं।  वेतन, मजदूरी, कमीशन आदि के रूप में भुगतान होते हैं।  इन सभी को याद रखना कठिन है।  लेखांकन इस अभाव को दूर कर देता है। 
  • लेखांकन से व्यवसाय संबंधित कई महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त होती हैं जैसे : 
           लाभ-हानि की जानकारी होना।
           संपत्ति तथा दायित्व की जानकारी होना। 
           कितना रुपया लेना है और कितना रुपया देना है। 
           व्यवसाय की आर्थिक स्तिथि कैसी है, आदि। 
  • अन्य व्यापारियों से झगडे होने की स्तिथि में लेखांकन अभिलेखों को न्यायालय में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।  न्यायालय प्रस्तुत किये लेखांकन को मान्यता प्रदान करता है 
  • वित्तीय लेखा से कर्मचारियों के वेतन, बोनस, भत्ते आदि से सम्बंधित समस्याओं के निर्धारण में मदद मिलती है।  

Read it for further knowledge :-

Share:

Contact Form

Name

Email *

Message *